आज के लेख में हम आपको हिंदी व्याकरण में उपयोग होने वाले संधि के बारे में बता रहे है। इसमें हम संधि किसे कहते और संधि का इस्तेमाल करके किस तरह से शब्द बनाये जाते है इसके नियम के बारे में भी सीखेंगे।

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संधि किसे कहते है
संधि का अर्थ होता है – मिलना या जोड़ना। हिंदी भाषा में दो वर्णो के मिलने से जो परिवर्तन आता है उसे संधि कहा जाता है।
बता दे कि संधि में प्रथम शब्द का पिछला वर्ण व् दूसरे शब्द का पहला वर्ण जब मिलता है तो एक नया शब्द बनता है। जैसे –
शिव + आलय = शिवालय
सर्व + उत्तम = सर्वोत्तम
यहाँ पर शिवालय शब्द में प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण व और दूसरे शब्द का पहला वर्ण आ मिलकर एक नया शब्द बना रहे है। इसलिए नया शब्द शिवालय बना है।
उसी प्रकार सर्वोत्तम शब्द में प्रथम शब्द का अंतिम वर्ण अ और दूसरे शब्द का पहला वर्ण उ दोनों मिलकर नया शब्द ओ हो गया है। जिससे नया शब्द सर्वोत्तम बना रहा है। इस तरह निर्मित शब्दों में हुए परिवर्तन को संधि कहते है।
संधि विच्छेद क्या होता है
संधि द्वारा निर्मित हुए शब्दों को जब विभाजित किया जाता है तो उसे संधि विच्छेद कहा जाता है। जैसे –
नवग्रह = नव + ग्रह
सूर्योदय = सूर्य +उदय
यहाँ पर नवग्रह शब्द में नव और ग्रह को अलग किया गया है इसे ही संधि विच्छेद कहते है। आपको बता दे कि इन शब्दों को पुनः जोड़ने पर यह संधि बन जाता है। संधि और संधि विच्छेद एक दूसरे के पूरक होते है।
संधि के प्रकार कितने होते है
संधि तीन प्रकार की होती है:-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्ग संधि
स्वर संधि किसे कहते है
दो स्वरों के मेल से जो बदलाव होता है उसे स्वर संधि कहा जाता है। जैसे –
जब दो स्वर आपस में जुड़ जाते हैं या दो स्वरों के मिलान से उनमें जो रूपांतर आता है, तो वह स्वर संधि कहलाती है। जैसे –
शिवा + आलय = शिवालय
विद्या + आलय = विद्यालय
यहाँ पर दो स्वरों यानी “आ” के मिलने से नया शब्द बना है। इसे ही स्वर संधि कहते है।
स्वर संधि के भेद क्या है
स्वर संधि पांच होती है –
- दीर्घ संधि
- गुण संधि
- वृद्धि संधि
- यण संधि
- अयादि संधि
दीर्घ संधि: दीर्घ का अर्थ है बड़ा या फिर जिसमे लम्बा विराम हो। इस तरह की संधि में यदि ‘अ’ स्वर के साथ ‘अ’ को जोड़ा जाये तो ‘आ’ स्वर बनता है इसे ही दीर्ध स्वर संधि कहा जाता है।
इसके अलावा ‘इ, उ ‘ के साथ भी ‘इ, उ ‘ के मिलने से जो स्वर बनेगा वह दीर्ध स्वर संधि कहलाता है।
जैसे-
धर्म + अनुसार = धर्मानुसार
(अ + अ = आ )
महा + आत्मा = महात्मा
(आ + आ = आ)
भानु + उदय = भानूदय
(उ + उ = ऊ )
गुण संधि: अगर “अ” तथा “आ” के साथ “इ, ई” को संधि करने पर ‘ए‘ बने, और “अ तथा आ” के साथ “उ, ऊ” होने पर ‘ओ‘ बने साथ ही “अ तथा आ” के साथ “ऋ” होने पर ‘अर‘ बने। तो यह गुण संधि कहलाता है।
जैसे-
(अ + इ = ए )
देव +इंद्र= देवेंद्र
(आ + उ = ओ)
महा + उत्सव = महोत्सव
वृद्धि संधि: जब अ,आ स्वर के साथ ए, ऐ रहे तो संधि करने पर ‘ऐ ‘ बने और अ ,आ के साथ यदि ओ, औ रहे तो ‘ औ ‘ बन जाए, तो वह वृद्धि संधि कहलाता है।
जैसे-
सदा + एव = सदैव
( आ + ए = ऐ)
यण संधि: संधि करते वक्त जब इ, ई के साथ यदि अन्य स्वर आ जाये तो ‘ य ‘ बन जायेगा और उ, ऊ के साथ अन्य स्वर आये तो ‘ व् ‘ बन जायेगा। इसी तरह ऋ के साथ यदि अन्य स्वर आये तो ‘ र‘ बन जायेगा। इसे यण संधि कहते है।
जैसे-
सु + आगत = स्वागत
(उ + आ = वा)
(इ + ए = ये )
प्रति + एक = प्रत्येक
अयादि संधि: संधि करते हुए ए, ऐ, ओ, औ के साथ यदि कोई दूसरा स्वर है तो “ए अय” में परिवर्तित हो जाता है। “ऐ आय” बन जाता है। “ओ अव” तथा “औ आव” हो जायेगा। यह अयादि संधि कहलाता है।
जैसे-
पो + अन = पवन
(ओ + अ = अव)
व्यंजन संधि किसे कहते है
इस तरह की संधि के समय जब व्यंजन के साथ कोई व्यंजन या फिर स्वर के जोड़ने से जो बदलाब आता है उसे व्यंजन संधि कहते है। जैसे-
सच्चित् + आनन्द = सच्चिदानंद
सत् + व्यवहार = सद्व्यवहार
जगत + ईश = जगदीश
विसर्ग संधि किसे कहते है
संधि के समय जब विसर्ग के उपरांत या तो स्वर या फिर व्यंजन वर्ण के आ जाने से जो परिवर्तन आता है। वह विसर्ग संधि कहलाता है। जैसे-
नमः + कार = नमस्कार
मन: + बल = मनोबल
अंतः + गत : अंतर्गत
विसर्ग संधि के प्रकार:-
विसर्ग संधि तीन तरह की होती है।
- सत्व विसर्ग संधि
- उत्व संधि
- रूत्व संधि
सत्व विसर्ग संधि – जब किसी संधि के समय शब्द के अंत में में “अ” स्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा स्वर हो और उसके उपरांत विसर्ग आये, इसके अलावा दूसरे शब्द के प्रारम्भ में वर्ण का तीसरा, चौथा, पांचवा अक्षर यानी कि “य्, र्, ल्, व्” में से कोई भी आये तब वर्ण अगले वर्ण के ऊपर आ जाता है और विसर्ग “र” बन जाता है। जैसे-
आशि: + वाद = आशिर्वाद
उत्व संधि – किसी पहले पद के अंतिम मे “अ” आ जाए फिर उसके उपरांत विसर्ग आ जाए और दूसरे पद के प्रारंभ में तीसरा, चौथा, पांचवा यानी कि “य्, र्, ल्, व्” में कोई भी आ जाये तो उसका “उ” बन जायेगा। इसे उत्व संधि कहते है। जैसे-
सर + वर = सरोवर
रूत्व संधि: जब पद के आखिर मे कोई स्वर आने के बाद विसर्ग आ जाए और उसके पश्चात् दूसरे पद के आरम्भ मे “त, थ” आये तो वह “स” बन जायेगा। और “च, छ्” आ जाए तो वह “श” बन जायेगा। ऐसे ही “ट, ठ” आये तो वह “ष” बन जाएगा। इस तरह की की संधि को रूत्व संधि कहा जाता है। जैसे-
नि: + चय = निश्चय
उपरोक्त लेख से आपको संधि के बारे में पता चला। इसमें आपको संधि के नियमो के बारे में भी जानकारी दी गयी है। जिसका इस्तेमाल कर आप नया शब्द आसानी से सरलता पूर्वक बना सकते है।
आप यह भी जान गए होंगे कि हिंदी में जो शब्द हम बोलते है वह संधि का इस्तेमाल करके बने हुए होते है। अब आप भी संधि के नियमो को पढ़कर शब्दों को आसानी से पहचान सकते है।